हिन्दू रीति रिवाज के अनुसार सर्वसम्मति से विवाह जिसे अंग्रेजी में Arranged Marriage  कहते हैं | पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित होकर युवाओं का स्वेच्छा से पति चुना जाना प्रेम विवाह है परन्तु प्रेम विवाह को शास्त्रों में गन्धर्व विवाह भी कहते हैं | गन्धर्व विवाह समेत हिन्दू शास्त्रों में विवाहों के जो प्रकार बताये गए हैं वे हैं
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  1. ब्रह्म विवाह
  2. दैव विवाह
  3. आर्ष विवाह
  4. प्राजापत्य विवाह
  5. आसुर विवाह
  6. गांधर्व विवाह
  7. राक्षस विवाह
  8. पैशाच विवाह
यह आठ प्रकार के विवाह कहे गए हैं | कन्या को वस्त्रादि से सम्मानित करके जाति के अंतर्गत विवाह ब्राह्म विवाह कहलाता है | अपने घर पर यज्ञादि के उपरान्त कन्या का दान करना दैव विवाह कहलाता है | वर से एक बैल और गाय शुल्क के रूप में लेकर कन्यादान करना आर्ष विवाह है | वर और कन्या साथ रहकर धर्मानुसार आचरण करें तो यह प्राजापत्य विवाह कहलाता है | वर पक्ष से काफी सारा धन लेकर कन्यादान करना आसुर विवाह कहलाता है | वर और कन्या दोनों एक दुसरे को स्वीकार लें तो यह गन्धर्व विवाह कहलाता है | युद्ध करके रोती हुई कन्या को स्वजनों से छीन लाना या उसका हरण कर लेना राक्षस विवाह कहलाता है | घर के लोगों की सुप्तावस्था में घर से कन्या को ले आना या घर से भगाकर विवाह कर लेना पैशाच विवाह कहलाता है | ब्राह्मणों के लिए प्रथम चार और क्षत्रियों के लिए प्रथम छह ग्राह्य हैं | परन्तु राक्षस और पैशाच विवाह धर्म के विरुद्ध बताये गए हैं | गन्धर्व विवाह के विषय में एक प्रसंग ‘महाभारत ग्रन्थ’ में आता है |

राजा दुष्यंत से शकुन्तला का गन्धर्व विवाह

प्राचीन काल में राजा दुष्यंत एक परम शक्तिशाली प्रतापी राजा हुए हैं | उन्होंने पूरी पृथ्वी का पालन किया था | इन्द्रादि देवताओं के समान शक्तिशाली नरेश एक बार कण्व् ऋषि के आश्रम में गए | वहां शकुन्तला नामक साध्वी जो रूप यौवन में अप्सराओं के समान थी राजा का स्वागत करने के लिए तत्पर हुई | राजा के पूछने पर उसने अपना परिचय देते हुए कहा | भगवान् इन्द्र ने ऋषि विश्वामित्र के तपोबल से भयभीत होकर मेनका को ब्र्ह्मश्री की तपस्या भंग करने के लिए भेजा | महान तपस्वी विश्वामित्र कामदेव के प्रभाव से मेनका से समागम करने के लिए तत्पर हो गए | इस तरह उनकी तपस्या को भंग करके मेनका ने इन्द्र का मनोरथ पूर्ण किया और विश्वामित्र ऋषि के समागम से एक कन्या संतान को जन्म दिया | उस कन्या का शकुंतों (पक्षियों) ने रक्षण किया और कन्व ऋषि से कन्या का पालन पोषण करने की प्रार्थना की | इसी पर कन्व ऋषि जो ब्रह्माचारी थे उन्होंने कन्या को शकुन्तला नाम देकर अपनी पुत्री माना और उसका पालन पोषण किया | उन्हें के आश्रम में जब कन्या यौवन को प्राप्त हुई तो एक दिन राजा दुष्यंत ने ऋषि कन्व की अनुपस्थिति में विवाह का प्रस्ताव शकुन्तला के सामने रखा | सदाचारिणी कन्या ने राजा से महर्षि के आने तक प्रतीक्षा करने को कहा जिस पर राजा ने इन आठ प्रकार के विवाहों का वर्णन सुन्दरी शकुन्तला  के समक्ष किया | क्षत्रिय राजा दुष्यंत धर्म के ज्ञाता थे इसीलिए गन्धर्व विवाह के प्रस्ताव का स्मरण कराकर उन्होंने शकुन्तला को विवाह धर्मसंगत बताया और यह भी कहा कि ऋषि कन्व भी इस विवाह को धर्मानुसार मानकर स्वीकार करेंगे | इस पर शकुंतला और दुष्यंत ने विवाह कर लिया | [vfb id=’1′]